वो स्टेशन वाली लड़की
(A Love Story That Began With A Missed Train)
🚉 पहली झलक — प्लेटफॉर्म नंबर 3
साल 2018 की एक ठंडी सुबह।
अनिरुद्ध — एक इंट्रोवर्ट, ऑफिस जाने वाला लड़का, जो रोज़ दिल्ली के लोकल ट्रेन से सफर करता था।
उस दिन, ट्रेन छूटने ही वाली थी कि एक लड़की तेज़ी से दौड़ती हुई आई… और दोनों की नज़रें टकरा गईं।
वो लड़की — काव्या — लाल दुपट्टा, सादगी और मुस्कराहट में बसी एक पूरी कविता।
वो ट्रेन पकड़ नहीं पाई… पर अनिरुद्ध का दिल ज़रूर पकड़ गई।
☕ दूसरी मुलाकात — वही टाइम, वही जगह
अगले दिन, और उसके बाद हर दिन…
काव्या उसी ट्रेन का इंतज़ार करती — अनिरुद्ध भी।
धीरे-धीरे, दोनों की मुलाकातें चाय की दुकानों से होते हुए हर रोज़ के “Hi” और “Bye” तक पहुँच गईं।
एक अजीब सी आदत बन चुकी थी — उसे देखे बिना दिन शुरू अधूरा लगता था।
💌 इज़हार — लेकिन बिना शब्दों के
अनिरुद्ध ने कभी काव्या से अपने दिल की बात नहीं कही।
पर वो रोज़ उसके लिए स्टेशन की बेंच पर एक फूल और एक चॉकलेट रख देता।
एक दिन काव्या ने मुस्कराते हुए कहा:
“पता है… मैं अब इस ट्रेन से सिर्फ तुम्हारे लिए आती हूँ।”
“और तुम्हारी चॉकलेट से ज़्यादा मुझे वो इंतज़ार पसंद है… जो तुम्हारे लिए करती हूँ।”
💔 एक मोड़ — अचानक विदाई
एक दिन काव्या नहीं आई।
एक दिन, दो दिन, एक हफ्ता…
अनिरुद्ध उसी स्टेशन पर घंटों बैठा रहा… हाथ में फूल, आँखों में इंतज़ार।
फिर एक चिट्ठी मिली।
“अनिरुद्ध, मुझे जयपुर शिफ्ट होना पड़ा। पापा की तबियत खराब है।
मैं कुछ कह नहीं पाई… शायद डर था कि टूट जाऊँगी।
लेकिन तुम्हारे साथ बिताए हर लम्हे को मैं हमेशा अपनी मुस्कान में जिंदा रखूंगी।
तुम मेरी अधूरी पर सबसे खूबसूरत कहानी रहोगे… हमेशा।”
⌛ 3 साल बाद — वही स्टेशन
2021, एक नई सुबह।
अनिरुद्ध अब पहले जैसा नहीं था। वो अब भी स्टेशन जाता था, लेकिन अब चुपचाप बेंच पर बैठता था।
फिर… एक दिन… एक लड़की आई।
लाल दुपट्टा… वही मुस्कराहट… वही आंखें।
“क्या मेरी ट्रेन छूट गई?”
अनिरुद्ध मुस्कराया — और पहली बार उसने खुद कहा:
“शायद… लेकिन मैं अब भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।”
🎉 अंत — अधूरा नहीं रहा
अब काव्या हर दिन उस स्टेशन पर आती है।
ट्रेन पकड़ने नहीं… बल्कि वो सफर करने,
जिसका नाम है — हमेशा का साथ।
💭 सीख:
“सच्चा प्यार कहीं भी मिल सकता है…
एक स्टेशन की भीड़ में, एक कॉफी की टेबल पर…
और कभी-कभी, एक छूटी हुई ट्रेन में भी।”प्यार ज़रूरी नहीं ज़ोर से कहा जाए…
बस वो लौट आए, तो समझो मुकम्मल हो गया।