💌 आखिरी खत: एक अधूरी मोहब्बत की दास्तान
📖 भूमिका:
कहते हैं सच्चा प्यार वो नहीं जो मिल जाए…
बल्कि वो होता है जो न मिलकर भी ज़िन्दगी भर साथ रहे।
ये कहानी है आरव और मायरा की…
एक ऐसा प्यार… जो कभी ज़ुबां पर आया नहीं, पर दिल की धड़कनों में हमेशा ज़िंदा रहा।
🧑🏫 पहली मुलाकात — कॉलेज के दिन:
साल 2016, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी।
आरव — एक शांत, किताबों में डूबा लड़का।
मायरा — चंचल, बातूनी और हर किसी की पसंदीदा।
कॉलेज के पहले ही दिन दोनों का आमना-सामना हुआ, जब मायरा गलती से आरव की किताबों पर कॉफी गिरा बैठी।
“सॉरी यार, ये कॉफी तुम्हारे नोट्स के लिए नहीं थी!”
आरव मुस्कराया और बोला: “शायद किस्मत को यही चाहिए था… तुम्हारा ध्यान!”
💓 दोस्ती से मोहब्बत तक:
धीरे-धीरे बातें बढ़ीं… दोस्ती गहरी हुई…
लाइब्रेरी की खामोशी में, कैंटीन की चाय में, और नोट्स के पन्नों में दोनों एक-दूसरे को ढूंढ़ने लगे।
आरव हर रोज मायरा के लिए एक छोटा सा नोट छोड़ता — बिना अपना नाम लिखे।
“तुम्हारी हँसी… मेरी सबसे पसंदीदा आवाज़ है।”
मायरा को मालूम था, ये किसका काम है — लेकिन उसने कभी कुछ कहा नहीं।
⏳ प्यार… पर बिना इज़हार:
चार साल बीते… लेकिन दोनों ने कभी खुलकर अपने दिल की बात नहीं की।
कॉलेज खत्म हुआ, और एक दिन मायरा ने कहा:
“मुझे जॉब के लिए दिल्ली जाना है… शायद हम फिर न मिलें।”
आरव सिर्फ मुस्कराया… और सिर झुकाकर बोला:
“ख़ुश रहो… जहाँ रहो।”
💌 आखिरी खत:
2021 — आरव को मायरा की शादी का कार्ड मिला।
वो नहीं गया, लेकिन उसने एक चिट्ठी भेजी — बिना अपना नाम लिखे:
“तुम्हें देखना, चाहना… और तुम्हारे साथ चलना — मेरे हिस्से का प्यार था।
तुम्हारा किसी और के साथ खुश रहना — मेरी मोहब्बत की जीत है।
तुम्हारे नाम आखिरी खत…
शायद अधूरी रह गई कहानी, पर पूरी मोहब्बत।”
🌌 2025 — पांच साल बाद:
मायरा अब शादीशुदा है, पर एक पुरानी डायरी आज भी उसके पास है —
जिसमें आरव के सारे बिना नाम वाले नोट्स चिपके हैं।
हर साल, वो उसी तारीख को एक पुराना खत पढ़ती है…
और आंखें नम होकर कहती है:
“काश… तुम एक बार कह देते… ‘रुक जाओ’।”
🥀 निष्कर्ष:
प्यार हमेशा साथ रहने का नाम नहीं होता…
कभी-कभी ये दूर रहकर भी किसी की ज़िंदगी का सबसे हसीन हिस्सा बन जाता है।