राजस्थान में पशुधन
राजस्थान में पशुधन राज्य की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें इसका योगदान राज्य की जीडीपी का 10.30% है। हर पाँच साल में राज्य के राजस्व मंडल अजमेर द्वारा पशुधन की गणना की जाती है। अक्टूबर 2012 में 19वीं पशु गणना आयोजित की गई थी, जबकि देश में पहली पशु गणना 1919 में हुई थी।
2012 की 19वीं पशुगणना के अनुसार, राजस्थान में कुल 577.32 लाख पशुधन है, जो पूरे भारत के कुल पशुधन का लगभग 11.27% है। राज्य में पशु घनत्व 169 प्रति वर्ग किलोमीटर है, जहाँ दौसा और राजसमंद में सबसे अधिक (292) और जैसलमेर में सबसे कम (83) पशु घनत्व है। राज्य की 20वीं पशुगणना जुलाई 2017 से शुरू हुई थी।
2017 की पशु गणना के प्रमुख आंकड़े
# | पशु | जनसंख्या (लाख में) | कुल पशुधन का % |
---|---|---|---|
1 | गाय | 133.24 | 23.08% |
2 | भैंस | 129.76 | 22.48% |
3 | बकरी | 216.66 | 37.53% |
4 | भेड़ | 90.80 | 15.73% |
5 | ऊंट | 3.26 | 0.56% |
6 | खच्चर | 0.03 | 0.21% |
7 | गधा | 0.81 | – |
8 | कुक्कुट | 80.24 | 49.94% |
9 | कुत्ता | 5.70 | 54.29% |
गाय की नस्लें
राजस्थान में कई प्रकार की गायों की नस्लें पाई जाती हैं। यहाँ की जलवायु और विविध क्षेत्रीय परिस्थितियाँ इन नस्लों को विविधता देती हैं:
- गीर – यह नस्ल अजमेर, भीलवाड़ा, किशनगढ़ और चित्तौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है, जबकि इसका मूल स्थान गुजरात है। इसे “अजमेरी” या “रहना” भी कहा जाता है और यह अधिक दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है।
- थारपारकर – जैसलमेर, जोधपुर, और बाड़मेर जिलों में प्रचलित इस नस्ल का मूल स्थान जैसलमेर का मालानी गाँव है। इसे रेगिस्तानी इलाकों में अपनी सहनशीलता और दूध उत्पादन के लिए सराहा जाता है।
- नागौरी – यह नस्ल नागौर, जोधपुर, बीकानेर और नोखा क्षेत्रों में पाई जाती है और हल जोतने के लिए जानी जाती है। इसका मूल स्थान नागौर का सुहालक प्रदेश है।
- राठी – यह बीकानेर, जैसलमेर, श्रीगंगानगर और चूरू जिलों में पाई जाती है और दूध उत्पादन में अग्रणी है। इसे “राजस्थान की कामधेनु” भी कहा जाता है, और यह लाल सिंधी और साहिवाल नस्लों का मिश्रण है।
- कांकरेज – यह बाड़मेर और सांचौर के नेहड़ क्षेत्र में पाई जाती है। इसका मूल स्थान गुजरात का कच्छ क्षेत्र है, और इसे भारी बोझ उठाने तथा दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है।
- हरियाणवी – यह नस्ल सीकर, झुंझुनू, जयपुर और गंगानगर में पाई जाती है। इसका मूल स्थान हरियाणा का रोहतक, हिसार और गुड़गांव क्षेत्र है और यह दूध एवं भार वाहन दोनों में श्रेष्ठ है।
- मालवी – मुख्यतया भारवाही नस्ल, यह झालावाड़, डूंगरपुर, और बांसवाड़ा जिलों में पाई जाती है और इसका मूल स्थान मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र है।
- सांचोरी – यह नस्ल सांचौर, पाली और सिरोही जिलों में पाई जाती है।
- मेवाती – यह अलवर और भरतपुर जिलों में पाई जाती है।
विदेशी गाय की नस्लें
राजस्थान में विदेशी नस्ल की गायें भी पाई जाती हैं, जो दूध उत्पादन में उच्च हैं:
- जर्सी – अमेरिकी मूल की यह नस्ल अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।
- होलिस्टिन – यह नस्ल भी अधिक दूध उत्पादन में सक्षम है और इसका मूल स्थान अमेरिका और होलैंड है।
- रेड डेन – इसका मूल स्थान डेनमार्क है।
भैंस की नस्लें
राजस्थान का भारत में उत्तर प्रदेश के बाद भैंसों की संख्या में दूसरा स्थान है। राज्य में भैंस प्रजनन केंद्र वल्लभनगर (उदयपुर) में स्थित है। प्रमुख नस्लें इस प्रकार हैं:
- मुर्रा – यह सर्वाधिक संख्या में पाई जाने वाली नस्ल है और सर्वोत्तम मानी जाती है।
- जाफराबादी – यह सबसे शक्तिशाली नस्ल मानी जाती है।
- मेहसाणी – इसका मूल स्थान गुजरात के मेहसाणा क्षेत्र में है।
- भदावरी – इस नस्ल का मूल स्थान उत्तर प्रदेश है।
भेड़ की नस्लें
देश में भेड़ों की संख्या के आधार पर राजस्थान का तीसरा स्थान है। यहाँ भेड़ें विशेषकर बाड़मेर और न्यूनतम बांसवाड़ा में पाई जाती हैं। मुख्य नस्लें:
- चोकला भेड़ – इसे “भारत की मेरिनो” कहा जाता है, और यह झुंझुनू, सीकर, चूरू, बीकानेर, और जयपुर में पाई जाती है।
- मालपुरी भेड़ – जयपुर, टोंक और बूंदी में प्रचलित, इसकी ऊन मोटी होती है और इसे गलीचे बनाने में उपयोग किया जाता है।
- सोनाड़ी भेड़ – डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा में पाई जाती है।
- पूगल भेड़ – बीकानेर के पश्चिमी भाग और जैसलमेर में पाई जाती है।
- मगरा भेड़ – बीकानेर, जैसलमेर, और नागौर में पाई जाती है और इसे “बीकानेरी चोकला” भी कहा जाता है।
- नाली भेड़ – यह गंगानगर और सीकर में पाई जाती है।
भेड़ की विदेशी नस्लें
- रूसी मैरिनो – टोंक, सीकर और जयपुर में पाई जाती है।
- रेडबुल – टोंक में पाई जाती है।
- कोरिडेल – टोंक में भी मिलती है।
- डोर्सेट – चित्तौड़गढ़ में पाई जाती है।
बकरी की नस्लें
राजस्थान में बकरी पालन महत्वपूर्ण है, और राज्य का इस मामले में देश में पहला स्थान है। नागौर जिले का वरुण गाँव बकरियों के लिए प्रसिद्ध है। सर्वाधिक बकरियाँ बाड़मेर और जोधपुर में जबकि न्यूनतम धौलपुर में पाई जाती हैं।
- मारवाड़ी या लोही बकरी – जोधपुर, पाली और नागौर क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके बाल गलीचे बनाने में काम आते हैं।
- जखराना या अलवरी – अलवर के झखराना गाँव की यह नस्ल अधिक दूध देती है।
- बारबरी – बांसवाड़ा, धौलपुर, और अलवर क्षेत्रों में पाई जाती है।
- सिरोही – अरावली पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है और मांस के लिए उपयुक्त है।
ऊंट
भारत में राजस्थान का ऊँट उत्पादन में पहला स्थान है। यहाँ के बाड़मेर, बीकानेर, और चूरू क्षेत्रों में ऊंट पाए जाते हैं। नाचना ऊँट अपनी सुंदरता और बोझा ढोने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का केंद्रीय ऊँट अनुसंधान संस्थान जोड़बीड़, बीकानेर में स्थित है।
मुर्गी पालन
राजस्थान में मुर्गी पालन को भी प्रोत्साहन दिया गया है। अजमेर में सबसे उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ पाई जाती हैं। बांसवाड़ा में “कड़कनाथ योजना” शुरू की गई है, जिसमें कड़कनाथ नस्ल की मुर्गियाँ पाली जाती हैं।
प्रमुख नस्लें
- असील, बरसा, टेनी, वाइट लेगहॉर्न, इटेलियन
राजकीय कुक्कुट प्रशिक्षण केंद्र अजमेर में और राज्य कुक्कुट फार्म जयपुर में स्थित है।
पशुधन से जुड़ी राजस्थान सरकार की योजनाएँ
पशुपालकों को राहत देने और पशु स्वास्थ्य
में सुधार के लिए राजस्थान सरकार ने “मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना” 15 अगस्त 2012 से शुरू की। इसके तहत सभी पशुपालकों को पशुओं के लिए मुफ्त में आवश्यक दवाएँ उपलब्ध करवाई जाती हैं।
इस प्रकार, राजस्थान में पशुधन और उनकी नस्लें राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।