राजस्थान के विभिन्न जातीय लोकनृत्य राज्य की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं को बखूबी दर्शाते हैं। यहां के पारंपरिक लोकनृत्य विभिन्न अवसरों और पर्वों पर किए जाते हैं। आइए इनका संक्षेप में विवरण समझते हैं:
1. गरासिया जनजाति के नृत्य
- वालर नृत्य: यह नृत्य बिना वाद्य यंत्रों के दो अर्द्धवृतों में धीमी गति से किया जाता है, जिसमें स्त्री-पुरुष भाग लेते हैं।
- कूद नृत्य: तालियों की ध्वनि पर बिना किसी वाद्य यंत्र के गरासिया स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य।
- जवारा नृत्य: होली के समय स्त्री-पुरुष मिलकर इसे करते हैं।
- लूर नृत्य: लूर गौत्र की स्त्रियों का नृत्य, जिसमें वे वधू पक्ष से रिश्ते की मांग करती हैं।
- मोरिया नृत्य: विवाह के अवसर पर पुरुषों का सामूहिक नृत्य।
- मांदल नृत्य: मांगलिक अवसरों पर स्त्रियों का वृताकार नृत्य।
- रायण नृत्य: पुरुषों का मांगलिक अवसरों पर किया जाने वाला नृत्य।
- गौर नृत्य: गणगौर पर्व पर स्त्री-पुरुषों का सामूहिक नृत्य।
2. भील जनजाति के नृत्य
- गवरी (राई) नृत्य: यह नृत्य गवरी उत्सव के दौरान पार्वती की आराधना में 40 दिन तक चलता है और इसमें शिव और भस्मासुर की कथा प्रदर्शित होती है।
- गैर नृत्य: होली के अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाने वाला वृताकार नृत्य।
- नेजा नृत्य: होली और अन्य मांगलिक अवसरों पर भील स्त्रियों का खेल-नृत्य।
- द्विचक्री नृत्य: विवाह में पुरुष बाहरी वृत में और महिलाएं अंदर के वृत में नृत्य करती हैं।
- घूमरा नृत्य: मांगलिक अवसरों पर भील महिलाएं ढोल और थाली के साथ नृत्य करती हैं।
- हाथीमना नृत्य: विवाह के अवसर पर किया जाता है।
- युद्धनृत्य: दो दलों द्वारा युद्ध का अभिनय करते हुए किया जाने वाला नृत्य।
3. कथोड़ी जनजाति के नृत्य
- मावलिया नृत्य: नवरात्रों में उदयपुर के कथोड़ी पुरुषों द्वारा किया जाने वाला समूह नृत्य।
- होली नृत्य: होली के अवसर पर कथोड़ी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य।
4. सहरिया जनजाति के नृत्य
- शिकारी नृत्य: बारां जिले के सहरिया पुरुष शिकार का अभिनय करते हुए यह नृत्य करते हैं।
- लहँगी नृत्य: सहरियों का सामूहिक नृत्य।
5. कंजर जनजाति के नृत्य
- चकरी नृत्य: कंजर बालाओं द्वारा तेज गति से किया जाने वाला चक्राकार नृत्य, जो हाड़ौती क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
- धाकड़ नृत्य: कंजर समुदाय द्वारा झाला पाव की विजय की खुशी में किया जाने वाला युद्ध नृत्य।
6. कालबेलिया जनजाति के नृत्य
- इण्डोणी नृत्य: स्त्री-पुरुष मिलकर पूंगी और खंजरी वाद्य यंत्रों पर वृताकार नृत्य करते हैं।
- शंकरिया नृत्य: कालबेलियों का प्रेमकथा आधारित युगल-नृत्य।
- पणिहारी नृत्य: पणिहारी गीत के साथ युगल-नृत्य।
- बागड़िया नृत्य: स्त्रियां भीख मांगते समय यह नृत्य करती हैं। गुलाबो नामक कलाकार ने कालबेलिया नृत्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है।
7. गुर्जर जनजाति के नृत्य
- चरी नृत्य: किशनगढ़ (अजमेर) क्षेत्र में गुर्जर महिलाएं मांगलिक अवसरों पर सिर पर चरी (बर्तन) में दीपक जलाकर यह नृत्य करती हैं। फलकूबाई प्रसिद्ध चरी नृत्यांगना हैं।
8. मेव जनजाति के नृत्य
- रणबाजा रतवई नृत्य: मेव समुदाय में स्त्री-पुरुष मिलकर मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य करते हैं। इसमें स्त्रियां सिर पर इण्डोणी व खारी नृत्य करती हैं और पुरुष अलगोजा और टामक बजाते हैं।
इन विविध नृत्य शैलियों के माध्यम से राजस्थान का सांस्कृतिक ताना-बाना लोकजीवन में गहराई से जुड़ा हुआ है, और विभिन्न समुदायों की परंपराओं को जिंदा रखता है।