राजस्थान के लोक देवताओं का समाज में विशिष्ट स्थान है। ये लोक देवता समाज के संरक्षक, रक्षक और उनके आदर्श माने जाते हैं। इनकी पूजा, आस्था और विश्वास के प्रतीक रूप में विभिन्न समुदायों द्वारा की जाती है। इनकी महत्त्वपूर्ण कथाएँ, जीवन चरित्र और प्रमुख स्थल राजस्थान की संस्कृति को समृद्ध बनाते हैं। राजस्थान के कुछ प्रमुख लोक देवताओं का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है:
1. रामदेवजी (रमसा पीर)
- जन्मस्थान: उंडुकासमेर (बाड़मेर)
- वंश: तंवर वंश के राजपूत
- प्रसिद्धि: इन्हें भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। ये हिंदू और मुस्लिम दोनों में समान रूप से पूजनीय हैं। मुसलमान इन्हें “रमसा पीर” के नाम से भी पुकारते हैं।
- विशेषताएँ:
- रामदेवजी ने “कामड़ पंथ” की स्थापना की और “चौबीस वाणियाँ” की रचना की।
- इनका प्रतीक चिन्ह “पगल्ये” है, जिसकी पूजा की जाती है।
- इनके लोकगीतों को “ब्यावले” कहा जाता है।
- प्रमुख स्थल: रामदेवरा (रूणिचा), पोकरण तहसील, जैसलमेर
- मेला: भाद्र शुक्ल दूज से भाद्र शुक्ल एकादशी तक रामदेवरा में विशाल मेला भरता है। इस मेले में तेरहताली नृत्य (जो कि कामड़ समुदाय की महिलाएं करती हैं) मुख्य आकर्षण होता है।
- अन्य स्थल: गुजरात का छोटा रामदेवरा, सुरताखेड़ा (चित्तौड़), बिराठिया (अजमेर) में इनके मंदिर हैं।
- भक्त: मेघवाल समुदाय इन्हें “रिखिया” कहते हैं और इनके फड़ का वाचन भी करते हैं।
2. गोगाजी (जाहरपीर)
- जन्मस्थान: ददरेवा (चुरू)
- समाधि स्थल: गोगामेड़ी (हनुमानगढ़)
- प्रसिद्धि: इन्हें सांपों के देवता कहा जाता है। इनकी पूजा सांपों के काटने से बचाने के लिए की जाती है। इन्हें हिंदू-मुस्लिम दोनों में समान रूप से पूजनीय माना जाता है।
- प्रमुख स्थल: ददरेवा की शीर्ष मेडी, गोगामेड़ी
- मेला: भाद्र कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) के दिन गोगामेड़ी में राज्य स्तरीय पशु मेले के साथ आयोजित होता है।
- कथाएँ: गोगाजी के थान खेजड़ी के वृक्ष के नीचे होते हैं। गोगाजी के मुख्य द्वार पर “बिस्मिल्लाह” लिखा होता है।
- प्रतीक: इनका मकबरा गोगामेड़ी पर है और ये मकबरे के रूप में स्थापित हैं।
- वाद्य यंत्र: इनकी लोकगाथाओं में “डेरू” नामक वाद्य का उपयोग होता है।
3. पाबुजी
- जन्मस्थान: कोलूमंड गाँव, जोधपुर ज़िला
- प्रसिद्धि: पाबुजी को गायों और ऊंटों का रक्षक देवता माना जाता है। ये प्लेग रोग से भी रक्षा करने वाले माने जाते हैं।
- लोकगीत: पाबुजी के लोकगीतों को “पावड़े” कहा जाता है और इनमें “माठ” वाद्य का प्रयोग होता है।
- प्रमुख स्थल: कोलू गाँव में इनके नाम पर मेला भरता है।
- प्रतीक चिन्ह: हाथ में भाला लिए अश्वारोही (घोड़े पर सवार योद्धा)।
- घोड़ी: इनकी घोड़ी का नाम केसर कालमी था।
- फड़ वाचन: इनकी कथा के वाचन के समय “रावणहत्था” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग होता है।
4. तेजाजी
- जन्मस्थान: खरनाल, नागौर
- वंश: जाट वंश
- प्रसिद्धि: इन्हें गायों के रक्षक और कृषि के देवता के रूप में पूजा जाता है। तेजाजी को “कृषि कार्यों का उपकारक देवता” और “काला व बाला का देवता” भी कहा जाता है।
- मेला: भाद्र शुक्ल दशमी पर परबतसर, नागौर में भरा जाता है। इसे “तेजा दशमी” भी कहते हैं।
- प्रतीक चिन्ह: तलवार लिए हुए अश्वारोही।
- घोड़ी: इनकी घोड़ी का नाम “लीलण” (सिंगारी) था।
- कथाएँ: कहा जाता है कि लाछां गुजरी की गायों को मीणाओं से छुड़ाने के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए थे।
5. देवनारायण जी
- जन्मस्थान: आशींद, भीलवाड़ा
- वंश: गुर्जर
- प्रसिद्धि: इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ये गुर्जर समुदाय के प्रमुख आराध्य देव हैं।
- फड़ वाचन: इनकी फड़ राजस्थान की सबसे लंबी फड़ मानी जाती है। इसके वाचन के समय “जन्तर” नामक वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
- प्रमुख स्थल: सवाई भोज मंदिर (आशींद), देवधाम जोधपुरिया (टोंक)।
- मेला: भाद्र शुक्ल सप्तमी को आशींद में मेला लगता है।
- विशेषता: इनकी फड़ के लिए भारतीय डाक विभाग ने 5 रुपए का टिकट भी जारी किया है।
6. वीर तेजा जी
- जन्मस्थान: खरनाल, नागौर
- माता-पिता: राजकुंवर और ताहड़ जी
- विवाह: पैमल, पनेर नरेश रामचंद की पुत्री से हुआ।
- उपनाम: “धोलियावीर” (अजमेर में) के नाम से भी पुकारा जाता है।
- प्रसिद्धि: जाट समुदाय का आराध्य देव। तेजाजी को मुख्य रूप से अजमेर और हाड़ौती क्षेत्र में पूजा जाता है।
- प्रतीक चिन्ह: तलवार लिए हुए अश्वारोही।
- मेला: भाद्र शुक्ल दशमी पर, परबतसर (नागौर) में तेजाजी का राज्य स्तरीय पशु मेला लगता है। इसे “तेजा दशमी” भी कहते हैं।
7. मल्ली नाथ जी
- जन्मस्थान: तिलवाड़ा, बाड़मेर
- माता-पिता: रावल सलखा और रानी जाणीदे
- प्रसिद्धि: पशुपालकों के रक्षक और राज्य की सीमा के रक्षक माने जाते हैं।
- प्रमुख स्थल: तिलवाड़ा गाँव में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक मेला लगता है, जहाँ पशु व्यापार भी होता है।
- विशेषता: तिलवाड़ा का मेला मल्लीनाथजी के राज्याभिषेक के अवसर से वर्तमान तक आयोजित हो रहा है। इस मेले में थारपारकर और कांकरेज नस्ल के पशुओं का व्यापार होता है।
8. देव बाबा जी
- जन्मस्थान: नगला जहाज, भरतपुर
- प्रसिद्धि: गुर्जर समुदाय के रक्षक देवता। इन्हें “ग्वालों का पालन हारा” भी कहा जाता है।
- मेला: भाद्र शुक्ल पंचमी पर आयोजित होता है।
9. डूंगजी-जवाहर जी
- प्रसिद्धि: शेखावाटी क्षेत्र के लोकप्रिय लोक देवता। ये गरीबों के मददगार और अमीरों से धन लूटकर गरीबों में बाँटने के लिए प्रसिद्ध थे।
10. बिग्गा जी/वीर बग्गा जी
- जन्मस्थान: जांगल प्रदेश, बीकानेर
- प्रसिद्धि: मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इन्हें जाखड़ समाज के कुल देवता के रूप में पूजा जाता है।
ये लोक देवता न केवल राजस्थान के सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि सामाजिक एकता और सहिष्णुता के भी प्रतीक
हैं। इनके प्रति श्रद्धा राजस्थान के हर क्षेत्र में है, और इनके नाम पर आयोजित मेले सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र बनते हैं। इन लोक देवताओं की कथाएँ आज भी राजस्थान के लोक साहित्य और लोककथाओं में जीवित हैं और अपनी संस्कृति को संजोए हुए हैं।