राजस्थान का प्राचीन इतिहास
राजस्थान का इतिहास प्राचीन समय से ही समृद्ध रहा है, जिसमें कई जनपदों की व्यवस्था थी। बौद्ध और जैन साहित्य में इन जनपदों का उल्लेख मिलता है, और कुल 16 महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। ये जनपद राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में फैले हुए थे।
जनपदकालीन राजस्थान
राजस्थान के प्रमुख जनपदों का विवरण निम्नलिखित है:
- मत्स्य जनपद:
- क्षेत्र: अलवर और वर्तमान जयपुर।
- राजधानी: विराटनगर (बैराठ)।
- विशेषता: मत्स्य शब्द का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में मिलता है।
- कुरू जनपद:
- क्षेत्र: वर्तमान उत्तरी अलवर और दिल्ली।
- राजधानी: इन्द्रपथ।
- शूरसेन जनपद:
- क्षेत्र: पूर्वी अलवर, धौलपुर, भरतपुर, और करौली।
- राजधानी: मथुरा।
- शिवि जनपद:
- क्षेत्र: मेवाड़ (चितौड़गढ़)।
- राजधानी: माध्यमिका।
- विशेषता: पाणिनी की अष्टाध्यायी में इसका उल्लेख मिलता है।
- जांगल देश:
- क्षेत्र: बीकानेर और जोधपुर।
- विशेषता: महाभारत काल में इसे जांगल कहा जाता था।
- मालव जनपद:
- क्षेत्र: टोंक और आस-पास के इलाके।
- विशेषता: मालव जनपद के सिक्कों का भंडार टोंक जिले में मिला है।
- योद्धेय जनपद:
- क्षेत्र: राजस्थान का उत्तरी भाग, गंगानगर और हनुमानगढ़।
राजस्थान में राजपूतों की उत्पत्ति
राजस्थान में राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कई तर्क दिए गए हैं:
- वैदिक क्षेत्रियों से उत्पत्ति:
- मनुस्मृति के अनुसार, राजपूतों की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई है। ऋग्वेद के अनुसार, वे ब्रह्मा की बाहों से उत्पन्न हुए।
- अग्निकुण्ड से उत्पत्ति:
- पृथ्वीराज रासो के अनुसार, वशिष्ठ मुनि ने आबू के यज्ञकुंड से परमार, चालुक्य (सोलंकी), प्रतिहार, और चौहानों को उत्पन्न किया।
- ब्राह्मणों से उत्पत्ति:
- पिंगल सूत्र नामक ग्रंथ के अनुसार, राजपूतों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से हुई है। डॉ. डी. आर. भंडारकर ने चौहानों को गौत्रीय ब्राह्मण बताया है।
- विदेशी वंशों से उत्पत्ति:
- कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों को शक और सीथियन जातियों का वंशज बताया।
- वी.ए. स्मिथ ने राजपूतों को हूणों की संतान कहा है, जबकि विलियम स्मिथ ने कहा कि कई वंशों का उद्भव शक और कुषाण आक्रमण के समय हुआ।