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राजस्थान का इतिहास – जोधपुर के राठौड़

राजस्थान का इतिहास – जोधपुर के राठौड़

संस्थापक: रावसीहा
राजधानी: मंडौर

मंडौर में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में जोधपुर, नागौर और पाली का क्षेत्र मारवाड़ के रूप में जाना जाता है। यहीं पर 12वीं सदी में राठौड़ वंश की स्थापना हुई। कर्नल जेम्स टोड के अनुसार, कन्नौज के गहड़वाल वंश के शासक जयचंद के उत्तराधिकारियों ने मारवाड़ के राठौड़ वंश की स्थापना की। लेकिन सर्वाधिक मान्यता इस बात की है कि दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने ही उत्तर भारत में राठौड़ वंश की स्थापना की।

मान्यता है कि मंडौर रावण की पत्नी मदौदरी का जन्म स्थान था और आज भी मंडौर के ब्राह्मण रावण का पुतला नहीं जलाते हैं।

राव सीहा के बाद राव चूड़ा ने इस राज्य को बढ़ाया और राठौड़ वंश की ख्याति को चारों ओर फैलाया।

राव चूड़ा के पुत्र राव रणमल राठौड़ की बहन हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के शासक राणा लाखा के साथ हुआ।

1437 ई. में मेवाड़ में ही रणमल राठौड़ की हत्या हो जाने के कारण राठौड़-सिसोदिया संघर्ष आरम्भ हुआ। तब रणमल राठौड़ के पुत्र राव जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगार गौरी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल से कर दिया, जिससे इस संघर्ष की समाप्ति हुई।

राव जोधा

1459 ई. में जोधपुर की स्थापना की।

चिडियाटूंक पहाड़ी पर मेहरानगढ़ दुर्ग, इसकी आकृति मोर के समान है और इसका उपनाम मयूरध्वजगढ़, सूर्यगढ़ और गढ़चितमणि है।

राव मालदेव

1532 ई. में खानवा युद्ध के दौरान मारवाड़ के शासक राव गंगा ने अपने पुत्र मालदेव के नेतृत्व में राणा सांगा के पक्ष में 4000 सैनिक भेजे। 1532 ई. में मालदेव ने अपने पिता राव गंगा की हत्या कर दी और मारवाड़ का शासक बन गया। यह मारवाड़ के शासकों में अत्यधिक शक्तिशाली था। इसे 52 युद्धों का विजेता और हराम्मतवाली शासक माना जाता है। 1542 ई. में पाहेवा युद्ध में इसने बीकानेर के शासक रावजैतसी को पराजित किया। 1544 ई. में राव मालदेव और शेरशाह सूरी के बीच जैतारण/सुपेलगिरी का युद्ध (पाली) में हुआ। इस युद्ध को शेरशाह ने एक शडयंत्र द्वारा जीता और युद्ध जीतने के बाद कहा, “मैं मूठीभर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत प्रायः खो बैठा था”।

राव मालदेव चारित्रिक दृष्टि से अच्छा शासक नहीं था। उसका विवाह जैसलमेर शासक राव लूणकरण की पुत्री उमादे से हुआ। विवाह के अगले दिन ही वह रूठकर अजमेर चली गई और फिर कभी जोधपुर नहीं आई। उम्मादे को रूठी सेठ रानी के नाम से भी जाना जाता है। 1562 ई. में मालदेव की मृत्यु होने पर उम्मादे उसकी पगड़ी के साथ सत्ती हो गई।

राव चंद्रसेन (1562-1581)

मारवाड़ का प्रताप भूलाबिसरा राजा।

प्रताप का अग्रगामी।

1562 ई. में मालदेव की मृत्यु के उपरांत उसका छोटा पुत्र चंद्रसेन मारवाड़ का शासक बना। तब से उसके बड़े भाई राम और मोटाराजा, उदयसिंह अकबर से मिल गए। उन्होंने चंद्रसेन पर आक्रमण भी किए किन्तु चंद्रसेन ने उन्हें पराजित कर दिया।

1570 ई. में अकबर ने नागौर दरबार लगाया। चंद्रसेन उस दरबार में उपस्थित हुआ। इस दरबार में उसके दोनों भाई-भाभी थे। यथोचित सम्मान न पाकर वे चुपचाप नागौर दरबार में चले गए।

अकबर ने हुसैन कुली खां को मारवाड़ भेजा। चंद्रसेन भाद्राजूण (जालौर) चला गया। अकबर ने मारवाड़ का प्रशासक बीकानेर के रायसिंह को बनाया। रायसिंह ने भाद्राजूण पर आक्रमण किया तब चंद्रसेन मेवाड़ के जंगलों में चला गया।

चंद्रसेन का अंतिम समय वहीं व्यतीत हुआ और 1581 ई. में मेवाड़ के जंगलों में निधन हो गया।

मोटाराजा और जोधाबाई

1581 में अकबर ने चंद्रसेन के बड़े भाई मोटाराजा उदयसिंह को मारवाड़ का शासक बना दिया और मोटाराजा ने अपनी पुत्री जगतगुसाई का विवाह अकबर के पुत्र जहांगीर से कर दिया। जोधपुर की होने के कारण जगतगुसाई को जोधाबाई भी कहा जाता है। जगतगुसाई ने खुर्रम को जन्म दिया, जो शाहजहां के नाम से प्रसिद्ध मूगल शासक बना।

राव जसवंत सिंह

शाहजहां और औरंगजेब की सेवा।

भाषा-भूषण, सिद्धान्तसार, प्रबोध चन्द्रोदय।

शाहजहां ने इसे खालाजात भाई कहा था।

1658 ई. में शाहजहां के उत्तराधिकार संघर्ष में जसवंत सिंह ने दारा शिकोह का साथ दिया। औरंगजेब विजयी हुआ। मिर्जाराजा जयसिंह के कहने पर जसवंत सिंह को अपनी सेवा में रखा। जसवंत सिंह ने मुगलों की सेवा में रहते हुए अनेक कार्य किए। 1678 ई. में जमरूद (पेशावर) नामक स्थान पर जसवंत सिंह का निधन हुआ।

जसवंत सिंह की मृत्यु पर औरंगजेब ने कहा, “आज कफ्रु/धर्म विरोधी का दरवाजा टूट गया”।

मुहणौत नैणसी

जसवंत सिंह का दीवान और प्रसिद्ध लेखक, जिन्होंने “नैणसी री ख्यात” लिखी।

मारवाड़ का गजेटियर – “मारवाड़ रे परगने री विगत”।

अजीत सिंह ने मुहणौत नैणसी की हत्या करवा दी।

मुहणौत नैणसी को राजपुताने का अबुल फजल कहा गया।

जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण राठौड़ के पुत्र दुर्गादास राठौड़ ने जसवंत सिंह के पुत्र अजीत सिंह की रक्षा की। 1707 ई. में औरंगजेब के निधन के बाद, अजीत सिंह मारवाड़ का शासक बना। दुर्गादास को अजीत सिंह ने देशनिकाला दे दिया।

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