राजस्थान के आमेर क्षेत्र का इतिहास कछवाह वंश के राजाओं के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। कछवाह वंश के कुछ प्रमुख शासकों और उनके कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
भारमल (जनवरी 1562 ई.)
- अकबर से मिलन: भारमल ने 1562 में अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार की। यह समय अकबर की सुलहकुल नीति का था, जिसमें राजपूतों से मित्रता स्थापित करने का प्रयास किया गया।
- वैवाहिक संबंध: उन्होंने अपनी पुत्री हरखाबाई का विवाह अकबर के साथ कर दिया, जिससे मुगलों से कछवाहों का पहला वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ। हरखाबाई ने बाद में सलीम (जहांगीर) को जन्म दिया।
मानसिंह (1589-1614)
- जन्म: 6 दिसंबर 1550।
- सेवा काल: मानसिंह ने 1562 से 1614 तक अकबर की सेवा की।
- मनसब: उन्हें अकबर ने 7000 का मनसब दिया।
- युद्ध: 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति था। उन्होंने आमेर में शीलामाता मंदिर और जमवारामगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।
- संस्कृत साहित्य: उनके दरबारी कवियों में हाया बारहठ और पुण्डरिक बिट्ठल शामिल थे, जिन्होंने कई ग्रंथों की रचना की।
जयसिंह प्रथम (1621-1666)
- शासक: जयसिंह प्रथम, मानसिंह के पुत्र, ने तीन मुगल बादशाहों की सेवा की।
- मिर्जा राजा: शाहजहां ने उन्हें मिर्जा राजा की उपाधि दी।
- शिवाजी का सामना: 1664 में, उन्हें शिवाजी के विरुद्ध भेजा गया और 1665 में उन्होंने पुरंदर की संधि की।
- मृत्यु: 1666 में उनके पुत्र रामसिंह ने जहर देकर उनकी हत्या कर दी।
रामसिंह प्रथम
- पितृहन्ता: रामसिंह प्रथम को आमेर का पितृहन्ता कहा जाता है।
- जयगढ़ दुर्ग: उन्होंने आमेर में जयगढ़ दुर्ग का निर्माण किया।
जयसिंह द्वितीय (1723-1743)
- बचपन का नाम: चिमना जी।
- सवाई की उपाधि: औरंगजेब ने उन्हें “सवाई” की उपाधि दी।
- जयपुर की स्थापना: 1727 में उन्होंने जयपुर की स्थापना की, जिसका वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था।
- जंतर-मंतर: जयसिंह द्वितीय ने जंतर-मंतर का निर्माण किया, जो खगोलीय यंत्रों का एक समूह है।
सवाई जयसिंह (1719-1743)
- अश्वमेघ यज्ञ: उन्होंने प्राचीन समय के अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया।
- मृत्यु: 1743 में उनकी मृत्यु हुई।
ईश्वरी सिंह और माधो सिंह
- राजमहल का युद्ध: 1743 में ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच राजमहल का युद्ध हुआ। ईश्वरी सिंह की विजय हुई।
- आत्महत्या: 1750 में माधो सिंह से परेशान होकर ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली।