राजस्थान का इतिहास – अजमेर के चौहान
राजस्थान के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में चौहान वंश का विशेष महत्व है, खासकर अजमेर क्षेत्र में। चौहान वंश के प्रमुख शासकों और उनके कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
वासुदेव चौहान (वासुदेव प्रथम)
- राजधानी: वासुदेव चौहान ने शाकम्भरी (सांभर) को अपनी राजधानी बनाया, जिसका प्राचीन नाम सपादलक्ष था, जिसका अर्थ है “सवा लाख गांवों का समूह”।
- निर्माण: सांभर झील का निर्माण भी इसी शासक ने करवाया, जो आज भी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है।
पृथ्वीराज प्रथम
- स्वतंत्र शासक: चौहान वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक पृथ्वीराज प्रथम था।
- निर्माण: उन्होंने गुजरात के भडौच पर अधिकार कर वहां आशापूर्णा देवी के मंदिर का निर्माण करवाया।
अजयराज प्रथम
- स्थापना: अजयराज ने 1113 ई. में पहाडियों के मध्य अजमेरू (अजमेर) नगर की स्थापना की और इसे अपनी नई राजधानी बनाया।
- किलाबंदी: पहाडियों के मध्य अजमेर के दुर्ग का निर्माण भी उन्होंने किया। इसे बाद में मेवाड़ के पृथ्वीराज सिसोदिया ने तारागढ़ दुर्ग का नाम दिया। यह दुर्ग पूर्व का जिब्राल्टर कहलाता है।
अर्णोराज (1133-1155 ई.)
- पुत्र: अर्णोराज, अजयराज का पुत्र था।
- निर्माण: 1137 ई. में आनासागर झील का निर्माण करवाया। इसके अतिरिक्त, पुष्कर में वराह मंदिर का भी निर्माण अर्णोराज ने करवाया।
विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) (1153-1164 ई.)
- स्वर्णकाल: बीसलदेव का कार्यकाल चौहान वंश का स्वर्णकाल माना जाता है।
- काव्य रचना: उन्होंने हरकेलि (नाटक) की रचना की, जिसमें शिव-पार्वती और कुमार कार्तिकेय का वर्णन है।
- संस्कृत विद्यालय: 1153 से 1156 ई. के मध्य उन्होंने अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय का निर्माण करवाया, जिसे 1200 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर ढाई दिन का झोपड़ा बना दिया।
पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान)
- गद्दी: 1177 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने 11 वर्ष की आयु में राज गद्दी संभाली। उनके पिता का नाम सोमेश्वर और माता का नाम कर्पूरी देवी था।
युद्धों का क्रम
- तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.): इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित किया।
- तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.): इस युद्ध में मोहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के ससुर जयचंद ने गौरी का साथ दिया, क्योंकि पृथ्वीराज ने जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण कर उससे विवाह किया था।
साहित्यिक योगदान
- ग्रंथ लेखन: पृथ्वीराज चौहान के मित्र और दरबारी कवि चंद्रबरदाई ने “पृथ्वीराज रासो” नामक ग्रंथ लिखा, जबकि जयानक ने “पृथ्वीराज विजय” नामक ग्रंथ की रचना की।
सूफी संत
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती: सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भी पृथ्वीराज चौहान के समय अजमेर आए, जो अजमेर की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने।